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हिन्दी दिवस

देश भर के हर स्कूल, कॉलेज और सरकारी कार्यालय में हिंदी दिवस बेहद उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। 14 सितबंर का दिन वाकई हर भारतवासी के लिए गर्व का दिन है। ये पूरे देश को एक रखने वाली भाषा हिंदी का दिन है। सांस्कृतिक विविधताओं से भरे देश भारत में हिंदी दिवस के दिन की अहमियत बहुत ज्यादा है। भारत के विभिन्न क्षेत्रो में लोगों का खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, शारीरिक गठन, यहां तक की विचारधारा भी अलग-अलग प्रकार की है। भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग धर्म हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, पारसी तथा जैन धर्म के अनुयायी रहते हैं। और ये धर्म विभिन्न जातियों में बंटे हैं। विभिन्न क्षेत्रों के लोग अलग अलग भाषाएं बोलते हैं। धर्म, जाति, भाषा, संस्कृति की इन विविधताओं के फासलों को हिंदी खत्म कर देती है। हिंदी ही है तो अलग अलग क्षेत्रों की लोगों के दिलों की दूरियों को मिटाती है और सभी को एकता के सूत्र में बांधे रखती है।

हिन्दी दिवस पिछले 67 सालों से 14 सितंबर के दिन हर साल सेलिब्रेट किया जाता है. इसी दिन हिन्दी भाषा को संवैधानिक रूप से भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था. दो सौ साल की ब्रिटिश राज की गुलामी से आजाद होने के बाद भारतीयों ने सपना देखा था, कि एक दिन पूरे देश की एक ही भाषा होगी, जिसके जरिए देश के कोने-कोने में वाद-संवाद होगा. संविधान निर्माताओं ने देवनगरी में लिखी हिन्दी भाषा को देश की भाषा के रूप में स्वीकार किया.

संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अन्तरराष्ट्रीय रूप होगा। यह निर्णय 14 सितम्बर को लिया गया, इसी दिन हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार व्यौहार राजेन्द्र सिंहा का 50वाँ जन्मदिन था, इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था।

"राष्ट्रीय हिन्दी दिवस" प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। प्रबुद्ध सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा0 श्री प्रकाश बरनवाल का कहना है कि 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि हिन्दी संघ सरकार की आधिकारिक भाषा होगी। क्योंकि भारत मे अधिकतर क्षेत्रों में ज्यादातर हिन्दी भाषा बोली जाती थी इसलिए हिन्दी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया और इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किये।

इतिहास



वर्ष 1918 में गांधी जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राजभाषा बनाने को कहा था। इसे गांधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था। वर्ष 1949 में स्वतंत्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर 14 सितम्बर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की अनुच्छेद 343(1) में इस प्रकार वर्णित है. संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अन्तरराष्ट्रीय रूप होगा।

यह निर्णय 14 सितम्बर को लिया गया, इसी दिन हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार व्यौहार राजेन्द्र सिंह का 50वाँ जन्मदिन था, इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। हालांकि जब राष्ट्रभाषा के रूप में इसे चुना गया और लागू किया गया तो अ-हिन्दी भाषी राज्य के लोग इसका विरोध करने लगे और अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा। इस कारण हिन्दी में भी अंग्रेजी भाषा का प्रभाव पड़ने लगा।

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