Crisil Financial Conditions Index (FCI) : आने वाले कुछ महीनों के दौरान देश की आर्थिक हालत पहले से खराब होने की आशंका है. यह चेतावनी क्रिसिल रिसर्च की आज जारी रिपोर्ट में दी गई है. देश-दुनिया के आर्थिक हालात पर नज़र रखने वाली इस एजेंसी की रिपोर्ट में दी गई इस चेतावनी का आधार क्रिसिल का फाइनेंशियल कंडीशन्स इंडेक्स (FCI) है, जो मार्च 2022 के दौरान जीरो से भी नीचे चला गया. एजेंसी के मुताबिक इंडेक्स में यह गिरावट देश के वित्तीय हालात के कमजोर होने का संकेत दे रही है. एजेंसी का यह इंडेक्स इक्विटी, डेट, मनी और फॉरेक्स मार्केट जैसे 15 महत्वपूर्ण इंडिकेटर्स को मिलाकर तैयार किया जाता है, जो हर महीने देश की आर्थिक हालत का विस्तृत खाका पेश करता है.
क्यों बिगड़ रही इकॉनमी की हालत ?
क्रिसिल के फाइनेंशियल कंडीशन्स इंडेक्स (FCI) के जीरो से नीचे चले जाने का मतलब है कि देश के आर्थिक हालात औसत से खराब चल रहे हैं. क्रिसिल ने आज जारी रिपोर्ट में इंडेक्स के जीरो से नीचे यानी निगेटिव ज़ोन में चले जाने की 6 मुख्य वजहें गिनाई हैं :
1. विदेश पोर्टफोलियो निवेश (FPI) का देश से बाहर जाना
मार्च के महीने में फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टमेंट (FPI) का देश से बाहर नेट ऑउटफ्लो 6.6 अरब डॉलर का रहा, जबकि फरवरी में यह 5.1 अरब डॉलर था. इस दौरान डेट मार्केट से आउट फ्लो 0.7 अरब डॉलर रहा, लेकिन इक्विटी मार्केट से 5.4 अरब डॉलर की भारी भरकम रकम देश से बाहर चली गई. मार्च में क्रूड ऑयल की कीमतें 20.7 फीसदी के भारी उछाल के साथ 115.6 डॉलर प्रति बैरल तक जा पहुंचीं. भारत के आर्थिक हालात को बिगाड़ने में इसकी काफी बड़ी भूमिका रही है.
2. रुपये की कीमत घटना (Rupee Depreciation)
FPI के बढ़ते आउट-फ्लो ने रुपये पर दबाव बढ़ाया है, जिससे मार्च के महीने में डॉलर के मुकाबले रुपया करीब 1.7 फीसदी गिर गया. इससे पहले फरवरी में रुपये में 0.8 फीसदी की गिरावट देखी गई थी. रुपये को तेल की आसमान छूती कीमतों और बढ़ते व्यापार घाटे की वजह से भी भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा है. यह हालत तब है, जबकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से समय-समय पर फॉरेक्स मार्केट में दखल दिए की वजह से रुपया भारी गिरावट से कुछ हद तक बचा हुआ है.
3. शेयर बाजार में गिरावट
देश के शेयर बाजारों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिगड़े हालात और मार्च में FPI द्वारा बड़े पैमाने पर देश से पैसे निकालने का बुरा असर पड़ा है. एक महीने के दौरान सेंसेक्स में 2.2 फीसदी की गिरावट देखने को मिली. निफ्टी इंडिया वॉलेटैलिटी इंडेक्स (Nifty India VIX) भी मार्च में बढ़कर 25.1 हो गया, जो फरवरी में 22.1 था. बाजार में अस्थिरता का संकेत देने वाले इस इंडेक्स का लॉन्ग टर्म सामान्य स्तर 20 के आसपास रहता है.
4. G-Sec की यील्ड में बढ़ोतरी
गवर्मेंट सिक्योरिटीज़ (G-Sec) की यील्ड में चौतरफा बढ़ोतरी देखने को मिली है. ऐसा होने की मुख्य वजहों में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी, अमेरिका के फेड रेट और ट्रेजरी यील्ड्स में वृद्धि और बड़े पैमाने पर FPI के देश से बाहर जाने जैसे कारण शामिल हैं. 10 साल के G-sec की दरें मार्च में 7 बेसिस प्वाइंट बढ़कर औसतन 6.83 फीसदी हो गईं, जो जून 2019 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर है.
5. लिक्विडिटी का पहले से कम होना
सिस्टम में लिक्विडिटी अब भी ज्यादा है, लेकिन फरवरी के मुकाबले मार्च में इसमें कमी आई है. इसका संकेत इस बात से भी मिलता है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने मार्च में लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी (LAF) के तहत हर दिन औसतन 6.42 लाख करोड़ रुपये एब्जॉर्ब किए, जबकि फरवरी में यह औसत 6.88 लाख करोड़ रुपये का था. लिक्विडिटी में यह कमी रिजर्व बैंक के VRRR ऑपरेशन, सर्कुलेशन में करेंसी की मात्रा बढ़ने और बैंक क्रेडिट ग्रोथ जैसे अंदरूनी कारणों से आई है. इसके अलावा FPI आउटफ्लो और रिजर्व बैंक द्वारा फॉरेक्स मार्केट में डॉलर बेचे जाने जैसे बाहरी कारण भी इसके लिए जिम्मेदार हैं.
6. मनी मार्केट रेट्स में बढ़ोतरी
रिपोर्ट के मुताबिक देश में अतिरिक्त लिक्विडिटी में कमी आने के कारण मनी मार्केट रेट धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं. हालांकि कोरोना महामारी से पहले के मुकाबले ये अब भी कम हैं. लेकिन मार्च में कॉल मनी रेट औसतन 3 बेसिस प्वाइंट्स बढ़कर 3.30 फीसदी पर पहुंच गए, वहीं 91 दिनों के ट्रेजरी बिल्स की दर 2 बेसिस प्वाइंट बढ़कर 3.78% हो गई. 6 महीने के कॉमर्शियल पेपर्स की दर 4 बेसिस प्वाइंट बढ़कर 4.84 फीसदी पर जा पहुंची.
अब आगे क्या होगा?
क्रिसिल की रिपोर्ट के मुताबिक यह 6 कारण देश की आर्थिक हालत के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक बाहरी आर्थिक झटकों और घरेलू अर्थव्यवस्था की कमजोरी का साझा दुष्प्रभाव आने वाले दिनों में भारतीय बाजारों से पूंजी के पलायन (Capital Outflow) को और तेज़ कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो देश के वित्तीय हालात आने वाले महीनों में और भी चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं. इन हालात का असर देश की जीडीपी से लेकर महंगाई और चालू खाते के घाटे (Current Account Deficit) जैसे तमाम अहम आंकड़ों पर नजर आ सकता है. इसके अलावा रुपये की कीमतों और राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) पर भी इसका बुरा असर पड़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.
50 से 75 बेसिस प्वाइंट बढ़ सकती है ब्याज दर
रिपोर्ट में कहा गया है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ब्याज दरें कम रखने की एकोमोडेटिव पॉलिसी अब तक घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए बड़े कुशन का काम करती रही है. लेकिन अब बढ़ती महंगाई और अतंरराष्ट्रीय कारणों के दबाव में RBI को भी अपनी नीति में बदलाव करना पड़ेगा. इन हालात में रिजर्व बैंक इस वित्त वर्ष के दौरान नीतिगत ब्याज दरों में 50 से 75 बेसिस प्वाइंट तक की बढ़ोतरी कर सकता है. इसका असर मार्केट रेट्स पर भी पड़ेगा, जिससे वित्तीय हालात और कठिन हो जाएंगे. बैंकों ने अपने MCLR में बढ़ोतरी की शुरुआत तो अभी से कर दी है, जिससे ब्याज दरों में तेजी का नया दौर शुरू होने का संकेत माना जा सकता है.